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Tuesday, May 08, 2007

नारी

हृदय की कोमल भावनाओ से हरी ने तुझे बनाया
जगदंबा सा स्वरूप दे प्रभु ने तुझे सजाया
चाँद का चेहरा तुझे मे ढाला
शीशे की चुभान को आँखो में उतरा
हिरण की चल तुझ मे डाली
फूलों की हँसी होठों पर खिला दी
हीरे की कठोरता मन मे लाई
पत्तों की कॉमलता दिल में समाई
चाँदी की तन बदन पर छाई
सोने की चमक बालों में आई
कोयल की वाणी से कंठ सजाया
विष का प्याला नयनो में भर आया
डाली तुझमे खरगोश की थेर्थेराहट
और उतरी हवा की सरसराहत
रात की जवानी तुझ में आई
पेडो की कंपन साथ में लाई
नयनो में भर दी पर दुख कतराता
पर मूध नर तुझे समझ ना पाया
बना के दासी तुझे
सदा के लिए घर में क़ैद करवाया

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